Sunday, February 19, 2017

इन नजरों से देखो प्रियवर..पार क्षितिज के एक मिलन है

इन नजरों से देखो प्रियवर
पार क्षितिज के एक मिलन है
धरा गगन का प्यार भरा इक
मनमोहक सा आलिंगन है..

पंछी गान करे सुर लय में
नभ की आँखें लाल हुई हैं
कुछ दुःख सूरज के जाने का
कुछ शशि का भी अभिनन्दन है

धूल उठी है बस्ती बस्ती
गैया लौट के आई है घर
बछड़े की आँखें चमकी है
ममता भी कैसा बंधन है

शमा जली है परवाने को
खबर पड़ी तो भाग आया है
ला न सका कुछ,खुद जल बैठा
हाय कहो कैसा वंदन है

जीवन भी क्या जीवन जैसे
रंगमंच का खेल कोई है
कभी इसी में हास छिपा है
कभी छिपा इसमें क्रंदन है..

-सोनित