Sunday, May 14, 2017

साहब..मैं कुत्ता हूँ..

साहब..मैं कुत्ता हूँ..
अपनी जात का आदमी सूँघ लेता हूँ..
फिर हम मंडलियों में भौंकते हैं..
जिसकी भौंक जितनी ऊँची..
उसकी जात का उतना रुतबा..
और हम यूँ ही भौंकते रहते हैं..
कभी किसी वजह से..
पर अक्सर बेवजह ही..

पर रात के मनहूस अंधेरों में..
कुछ चहलकदमी सी होती है..
ख़ामोशी के चेहरे पर..
खून के छींटे पड़ते हैं..
और तब जो चीखें उठती है,,
वो हर जात की होती है..

सुना है दूर उस जंगल में..
चंद भेड़िये रहते हैं..
और ये भी कि..
उनकी जात नहीं होती.......!!

Saturday, May 13, 2017

क्यूँ कहूँ?

क्यूँ कहूँ?
कहना जरुरी है?
तब तो नहीं था!

हाँ..तब जब..

एक चाँद पर नजरें गाड़े..
हम दोनों ने ख्वाब बुने थे..
और मिलाकर तारों को..
नाम लिखा था एक दूजे का..
पहली बारिश के पानी में..
बेसुध होकर भीगे थे हम..
नंगे पाँव चले थे रस्ते..
औ छालों का ध्यान नहीं था..

फिर क्यूँ बोलो अब कुछ कहना..
सूनी पलकें..भीगे नैना..
और सवालों के घेरे में..
आज अकेला जूझ रहा हूँ..
कमरे के कोने में बैठे..
दीवारों से बूझ रहा हूँ..

   

Tuesday, May 2, 2017

और चाहिए भी क्या..

(चित्र: गूगल साभार)

चाँद, रात, तेरी बात, और चाहिए भी क्या..
संग तेरे अब हयात, और चाहिए भी क्या..

फूल शर्मशार है, तितलियाँ बीमार हैं..
आज ऐसा हुस्न साथ, और चाहिए भी क्या..

इक नजर यूँ फेरकर, हाय मारा घेरकर..
हाय इतनी इल्तिफ़ात, और चाहिए भी क्या..

कह सके हम तो क्या, खुश हैं थोड़ा गम तो क्या..
इश्क़ की यही सिफ़ात, और चाहिए भी क्या..

कल मिरि मजार पर, बज़्म कुछ हज़ार पर..
बस हयात तेरे  बाद, और चाहिए भी क्या..
      

                                              -सोनित

(शब्दार्थ: हयात-life,existence; इल्तिफ़ात- kindness/attention; सिफ़ात-attribute, qualities; बज़्म-assembly)