Tuesday, May 2, 2017

और चाहिए भी क्या..

(चित्र: गूगल साभार)

चाँद, रात, तेरी बात, और चाहिए भी क्या..
संग तेरे अब हयात, और चाहिए भी क्या..

फूल शर्मशार है, तितलियाँ बीमार हैं..
आज ऐसा हुस्न साथ, और चाहिए भी क्या..

इक नजर यूँ फेरकर, हाय मारा घेरकर..
हाय इतनी इल्तिफ़ात, और चाहिए भी क्या..

कह सके हम तो क्या, खुश हैं थोड़ा गम तो क्या..
इश्क़ की यही सिफ़ात, और चाहिए भी क्या..

कल मिरि मजार पर, बज़्म कुछ हज़ार पर..
बस हयात तेरे  बाद, और चाहिए भी क्या..
      

                                              -सोनित

(शब्दार्थ: हयात-life,existence; इल्तिफ़ात- kindness/attention; सिफ़ात-attribute, qualities; बज़्म-assembly)


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